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ग्राफ्टेड थार शोभा खेजड़ी का पौधा बीकानेर कृषि अनुसंधान केंद्र (काजरी) द्वारा विकसित

काजरी द्वारा विकसित ग्राफ्टेड थार शोभा खेजड़ी

काजरी द्वारा विकसित ग्राफ्टेड थार शोभा खेजड़ी

थार शोभा खेजड़ी अधिक उपज देने वाली और बेहतर गुणवत्ता वाली रोगाणु रहित किस्म है।

बीकानेर कृषि अनुसंधान केंद्र (काजरी) ने खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) की नई वैरायटी तैयार की है। "थार शोभा" किस्म विश्व में खेजड़ी की पहली ग्राफ्टेड किस्म है। यह अधिक उपज देने वाली और बेहतर गुणवत्ता वाली रोगाणु रहित किस्म है। थार शोभा खेजड़ी पूर्ण रूप से जैविक विधि पर आधारित पौधा है। थार शोभा माध्यम आकर की कांटे रहित खेजड़ी होती है। इस पर कम समय में ही सांगरी लगनी शरू हो जाती है जो परंपरागत खेजड़ी की सांगरी से अधिक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक है। इसमें लगने वाली सांगरी बहुत ही सुंदर, पतली और आकर्षक एवं एक समान होती है। थार शोभा खेजड़ी अधिक उपज देने वाली और बेहतर गुणवत्ता वाली किस्म है। थार शोभा किस्म के पौधे पर लुंग (पत्तियाँ) देशी खेजड़ी की तुलना में डेढ़ से दो गुना ज्यादा आती है। इसकी पत्तियां भी घनी होती हैं जो जानवरों के लिए बेहतर चारा होती है। थार शोभा किस्म के पौधे जल्दी परिपक्व हो जाते है जिससे 2 वर्ष बाद ही इस पर फल (सांगरी) लगनी शरू हो जाती है। जिससे किसानों को जल्दी ही आमदनी मिलनी शरू हो जाती है। सामान्यत: कांटे वाले देशी खेजड़ी का पेड़ 20 फीट से अधिक ऊँचा होता है जिस पर चढकऱ पर सांगरी तोडना जोखिम भरा काम है लेकिन काँटे रहित थार शोभा खेजड़ी की ऊंचाई कम (6-10 फीट) होने के कारण सांगरी की तुड़ाई, लुंग लेना व इसकी कटाई-छंटाई सुगमता से और आसानी से की जा सकती है।

हाइब्रिड खेजड़ी का यह पेड़ स्थानीय स्तर पर कई स्थानीय नाम से जाना जाता है। जैसे सांगरी का पेड़, खेजड़ी का पेड़, बीकानेर की खेजड़ी, हाइब्रिड खेजड़ी, बीकानेरी सांगरी का पेड़ आदि। काजरी की वैज्ञानिकों ने इसका नाम "थार शोभा खेजड़ी" रखा है। यह थार शोभा खेजड़ी के नाम से ही प्रसिद्ध है। थार शोभा खेजड़ी के फूल अत्यधिक छोटे (5-6 मिलीमीटर) व अधिक संख्या में होते है। इन्हे मिमझर कहते है। ये हरे, हरे-पिले अथवा दूधिया रंग के होते है। खेजड़ी के फूल मार्च व अप्रेल माह में खिलते है ये उभयलिंगी होते है। लेकिन इनमे स्व-परागण नहीं होता है। पर-परागण क्रिया से निषेचन होता है अतः इसमें मधु-मखियाँ, भवरें, किट-पतंगों आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मौसम में अनुकूलता होने पर अप्रेल के दूसरे सप्ताह से लेकर मई के तीसरे सप्ताह तक फूलों में लगातार परागण होने से फलिया गुच्छों में लगती है। कच्ची फलियां (सांगरी) की 2-3 दिन से नियमित अंतराल में तुड़ाई करने से अधिक उपज प्राप्त होती है।

सांगरी व लुंग का पोषकीय महत्व

लुंग :- खेजड़ी वृक्ष शुष्क व अर्ध शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है। खेजड़ी का पेड़ बहुउपयोगी एवं बहुवर्षीय फलीदार वृक्ष है। इसकी पत्तियों का चारा जिसे लुंग कहा जाता है उच्च कोटि के पोषक तत्वों के कारण प्रख्यात है। पत्तियों में 14-18% प्रोटीन, 15-20% रेशा तथा 8 % खनिज- लवण जिसमे अधिकतर कैल्शियम और फास्फोरस पाए जाते है। लेग्यूमिनेसि कुल का होने के कारण खेजड़ी वायुमंडल से नाइट्रोजन स्थिरीकरण भी करता है। इसकी पत्तियां लगातार मिट्टी में मिलकर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढाती है। जिससे इसके आसपास की गयी अन्य खेती में बढ़वार होती है। थार शोभा खेजड़ी पौधों का उचित उत्पादन प्रबंधन कर हर वर्ष उत्तम गुण की सांगरी के साथ-साथ उच्च क़्वालिटी का लुंग भी लिया जा सकता है। लुंग को सुखाकर भंडारण भी किया जा सकता है। जिससे पशुओं को साल भर पौष्टिक चारा दिया जा सकता है। यह दुधारू पशुओँ के लिए अतिउत्तम आहार है।

सांगरी :- थार शोभा खेजड़ी से प्राप्त कच्ची फलियों को सांगरी कहते है। उत्तम, अधिक उपज और एक सामान सांगरी उत्पादन के लिए थार शोभा खेजड़ी एक सफल और प्रसिद्ध क़्वालिटी है। एक अनुमान के अनुसार अच्छे किस्म की सांगरी सिर्फ 15 से 20% पेड़ो में ही पायी जाती है। अन्य सभी खेजड़ी वृक्ष लुंग व लकड़ी की दृस्टि से उपयोगी होते है। थार शोभा खेजड़ी की सांगरी की लंबाई साधारण खेजड़ी पर लगने वाली सांगरी से अधिक (13.1 - 20. 2 cm) लम्बी एवं पतली होती है। इसमें बीज का साइज भी छोटा होता है। थार शोभा की सांगरी में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक पाई गई है। कच्ची सांगरी में औसतन 8% प्रोटीन, 58% कार्बोहाइड्रेट, 28% फाइबर, 2% वसा, 0.4% कैल्शियम और 0.2% आयरन (लौह तत्व) तथा अन्य सूक्ष्म तत्व पाए जाते हैं जो स्वास्थ्यवर्धक और गुणकारी हैं। सूखी सांगरी राजस्थान की प्रसिद्ध पंचकुटा सब्जी का मुख्य घटक है। पकी फली को खोखा कहा जाता है, इसमें 8-15% प्रोटीन, 40-50% कार्बोहाइड्रेट, 8-15% शर्करा और 9-21% फाइबर होता है। खोखों को पीसकर पाउडर बनाकर बिस्कुट, राजस्थानी ढोकला आदि बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जा सकते हैं।

ग्राफ्टेड थार शोभा खेजड़ी

थार शोभा खेजड़ी

थार शोभा खेजड़ी से आय

खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) कृषि प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है और भारतीय रेगिस्तान की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खेजड़ी का पेड़ किसानों की आय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। थार शोभा खेजड़ी में कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता है। इसका उपयोग करने वाले किसानों द्वारा आजीविका के विभिन्न तरीकों को बनाए रखने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्नत उत्पादन तकनीक अपनाकर थार शोभा खेजड़ी की बागवानी के साथ-साथ अन्य पौधों एवं फसलों की उपज लेकर बहुत अच्छा आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

  1. थार शोभा खेजड़ी की पत्तियों का चारा लुंग
    खेजड़ी की पत्तियां (लूंग) से आय

    थार शोभा खेजड़ी की पत्तियों का चारा पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है। खेजड़ी की पत्तों के चारे को लुंग या लुंम कहते है। लुंग चारा भेड़, बकरी, ऊँठ, गाय सभी पशुओं को पसंद होता है। इसकी हरी पत्तियों को इसकी कोमल टहनियों के साथ उचित अवस्था में तोड़ लिया जाता है और पशुओं को ताजा दिया जाता है। पेड़ो की छंगाई से प्राप्त परिपक्व पत्तियों को सुखाकर लंबे समय तक चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसकी अत्यधिक पौष्टिक पत्तियाँ पशुओं के लिए चारे का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। पशुओं के चारे के लिए लुंग का एक व्यवस्थित व्यापार होता है। लुंग चारा लगभग 12 से 15 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदा और बेचा जाता है। बागवानी के लिए लगाए गए थार शोभा खेजड़ी से अधिकतम लुंग प्राप्त किया जा सकता है। अच्छी तरह से विकसित थार शोभा बगीचे 3 से 5 वर्षों के बाद लुंग चारे का उत्पादन करने योग्य हो जाते हैं। एक पौधे से प्रतिवर्ष 10 से 12 किलोग्राम लुंग प्राप्त किया जा सकता है।

  2. थार शोभा खेजड़ी से प्राप्त सांगरी
    खेजड़ी की फलियां (सांगरी) से आय

    थार शोभा खेजड़ी से प्राप्त सांगरी आय का एक मुख्य स्रोत है। मरुधरा की यह प्रसिद्ध सब्जी देश-विदेश में भी अति-लोकप्रिय है। कच्ची फलियां ताजी व सुखी हुई दोनों अवस्थाओं में उपयोग में ली जाती है। इससे राजस्थान की प्रसिद्ध लोकप्रिय पंचकूटा की सब्जी बनाई जाती है। सांगरी से अचार भी बनता है जो लम्बे समय तक उपयोग में लिया जा सकता है। थार शोभा खेजड़ी से मिलने वाली पतली सांगरी की विदेशों भरी माँग है। सीजन के दौरान गीली सांगरी बेचने से अच्छी आमदनी हो जाती है। सुखी सांगरी से साल भर आय होती है। सांगरी के दाम क़्वालिटी के अनुसार अलग-अलग होते है। ग्राफ्टेड थारशोभा खेजड़ी का सात से आठ साल का पौधा 5 से 10 किलोग्राम सांगरी और दस - बारह साल से बड़ा पौधा लगभग 25 किलोग्राम तक सांगरी पैदा कर सकता है। एक पूर्ण विकसित पेड़ से 50 किलोग्राम से अधिक सांगरी का उत्पादन किया जा सकता है। यह मौसम, स्थान और देखभाल पर निर्भर करता है। खेजड़ी की बागवानी एवं व्यावसायिक खेती लाभदायक है। कच्ची सांगरी की स्थानीय स्तर पर कीमत 150-200 रुपये प्रति किलोग्राम है। सूखने के बाद उत्पादक क्षेत्र में ही सूखी सांगरी की कीमत लगभग 5 से 8 गुना तक बढ़ जाती है, जबकि अन्य राज्यों में यह 1800-2000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकती है। जब सुखी सांगरी को ऑनलाइन बेचा जाता है, तो इसकी कीमत 2200-2800 रुपये प्रति किलोग्राम होती है। पकी हुई सूखी फली (खोखा) का पाउडर बनाया जा सकता है जिससे बिस्कुट और कुकीज़ जैसे बेकरी आइटम तैयार करने में उपयोग कर आय में वृद्धि की जा सकती है।

  3. Grafted Thar Shobha Khejri Plants
    थार शोभा खेजड़ी से अन्य आय

    थार शोभा खेजड़ी बंजर भूमि में, क्षारीय भूमि व कम खारे पानी में भी हो सकती है। इसकी जड़ें भूमि में सीधी गहराई तक पहुँचती हैं जिससे यह कम पानी में या रेगिस्तान में भी आसानी से उग जाता है। थार शोभा खेजड़ी के साथ अन्य फसलों के उत्पादन में अधिक वृद्धि होती है। फसल की उपज अधिक होने से किसानों की आय में बढ़ोत्तरी होती है। थार शोभा खेजड़ी एक बहुउद्देशीय वृक्ष है। इससे मिलने वाली लकड़ी, ईंधन, पशुओं के लिए चारा, शहद, औषधि, गोंद आदि से आय होती है। और यह खेत के लिए बाड़ प्रदान करता है। इसके तने और शाखाओं से निकलने वाले हल्के पीले नारंगी रंग के गोंद के साथ तने की छाल, पत्तों का भी औषधीय और व्यावसायिक महत्व है। यह मृदा सुधार, मृदा संवर्धन, तेज हवा से सुरक्षा और जैव विविधता के रूप में पर्यावरण पर भी प्रभाव डालता है। बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय के शोध से पता चला है कि थार शोभा खेजड़ी में रोग प्रतिरोधक क्षमता कई गुना अधिक है। थार शोभा खेजड़ी पूर्णतः जैविक है। इसमें ज्यादा केमिकल की जरूरत नहीं होती है।

थार शोभा खेजड़ी की पहचान एंव विशेषता

थार शोभा खेजड़ी की विशेषता : - थार शोभा खेजड़ी का पौधा अत्यंत कठोर रेगिस्तानी जलवायु, कम वर्षा और 8 महीने तक वर्षा जल का अभाव, लंबे समय तक भीषण गर्मी और लू, वातावरण में न्यूनतम नमी और अत्यधिक वाष्पीकरण, सर्दियों में पाला आदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रह सकता है। थार शोभा खेजड़ी का पौधा मरुस्थल की बालू रेत, समतल खेत, कंकरीली-पत्थरीली जमीन के साथ क्षारीय भूमि 9.5 PH जैसे विपरीत परिस्थितियों में भी आसानी से लहराते रहते है। खेजड़ी पौधों के विभिन्न भागों का उपयोग लंबे समय से रेगिस्तानी लोगों द्वारा विभिन्न उपयोगों के लिए किया जाता रहा है। पत्तियाँ, फलियाँ आदि को निर्जलीकरण करके लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है और लंबे समय तक इस्तेमाल भी किया जा सकता है। अत्यधिक पौष्टिक खेजड़ी की पत्तियाँ जानवरों के लिए चारे का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जबकि सांगरी नामक पौष्टिक फलियाँ मनुष्यों के लिए सब्जी के रूप में मूल्यवान हैं। अपरिपक्व फलियाँ कच्चे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खनिजों से भरपूर होती हैं। थार शोभा खेजड़ी को बरसात के मौसम (जुलाई-अगस्त) में लगाना उचित होता है। एक बार स्थापित होने के बाद इसकी ज्यादा देखभाल करने की जरुरत नहीं होती है। थार शोभा खेजड़ी में रोग प्रतिरोधक क्षमता कई गुना अधिक है साथ ही अत्यधिक गर्मी 50°C तक व सर्दियों में -2°C तक तापमान को आसानी से सहन करने की क्षमता होती है। यह वृक्ष रेगिस्तान की रेतीली मिट्टी में, तनिक क्षारीय मिट्टी और कम खारे पानी में भी आसनी से पनप जाता है। यह लेग्यूमिनेसि कुल का पौधा होने कारण मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करके मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ता है। यह 100-450 मिमी बरसात वाले स्थानों में भी आसानी से जीवित रह सकता है। रेगिस्तानी ग्रामीण इलाको में खेजड़ी जीविकोपार्जन का मुख्य साधन है। खेजड़ी से चारा, ईंधन, सब्जी, गोंद, औषधि के अतिरिक्त इसके पास होने वाली चारों व फसलों में दाने भी अधिक होते है। बहुपयोगी विशिष्ट लक्षणों के कारण इसे राजस्थान का कल्पवृक्ष भी कहा जाता है।

थार शोभा खेजड़ी का पौधा

थार शोभा खेजड़ी का पौधा कहाँ मिलेगा

थार शोभा खेजड़ी का बड़ी मात्रा में उत्पादन बीकानेर में होता है। नर्सरी में थार शोभा खेजड़ी के पौधे वानस्पतिक प्रवर्धन की कलिकायन विधि से तैयार किये जाते है। ये उच्च क़्वालिटी के शीघ्र, अधिक व एक सामान वानस्पतिक वृद्धि एवम उत्तम गुणों की सांगरी उत्पादन करने वाले होते है। पौध शाला में खेजड़ी के बीजू मूल-वृन्त तैयार किये जाते है। मूल-वृन्त तैयार करने के लिए उपयुक्त, चयनित एवं स्वस्थ्य बीजू पेड़ों से बीज लिया जाता है। बीजों को बार्विस्टीन या केप्टान से उपचारित किया जाता है। जब ये एक साल की आयु के हो जाते है तब उन पर उन्नत किस्मों की कलिकायन कर विकसित किया जाता है। जिससे किसानों को व्यवस्थित बागवानी के लिए उत्तम गुणवत्ता व अधिक उपज देने वाले पौधे प्राप्त होते है। पौधशाला प्रबंधन की उन्नत तकनीक अपनाकर तैयार मूल-वृंत 6-7 महीनों में 30-45 cm लम्बाई का पौधा हो जाता है, फिर पौधों को निकाल लिया जाता है और सीधा विपणन अथवा कलिकायन करने योग्य मूल-वृंत पौधों को अन्य क्यारियों में व्यवस्थित कर लिया जाता है। जब मूल-वृंत 12-18 महीने के हो जाते है तब 50-70 cm लम्बाई व तना 0.92-1.23 cm मोटाई तक हो जाता है तब इस अवस्था में कलिकायन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त एवं सार्थक परिणाम रहे है।

बागवानी के लिए थार शोभा खेजड़ी के पौधे बीकानेर स्थित S K Nursery House से प्राप्त किये जा सकते है।
बागवानी के लिए थार शोभा खेजड़ी के पौधे

देशी खेजड़ी का वृक्ष

खेजड़ी को ही शमी वृक्ष कहते है

थार शोभा खेजड़ी की व्यवसायिक खेती के लिए जो बगीचा तैयार करते है उसमे देशी खेजड़ी के वृक्ष भी होने चाहिए। ये प्राकृतिक रूप से ही उगे हुए होते है। इन्हे हटाना नहीं चाहिए। अगर नहीं है तो देशी खेजड़ी के वृक्ष लगाने चाहिए। इससे थार शोभा के उत्पादन में कुछ वृद्धि हो सकती है। देशी खेजड़ी अपनी गहरी जड़ प्रणाली, फलीदार प्रकृति, कटाई की संभावना और विभिन्न जैविक और अजैविक तनावों को सहन करने की क्षमता के कारण शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में सुसंगत बारहमासी हरा रहने वाला वृक्ष है। किसानों ने खेजड़ी के पौधों को अपने खेतों और मेड़ों पर बरकरार रखा है क्योंकि पेड़ों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि ये हर तरह से किसानों के साथी है। खेजड़ी की छायादार और खुली परिस्थितियों में उगाए गए आंवला, बेर, अमरूद, अनार और बेल जैसे फलों के पेड़ों की वानस्पतिक शक्ति पर खेजड़ी वृक्ष के प्रभाव का भी आकलन किया गया। यह देखा गया कि खुले में उगाए गए फलों के पेड़ों की तुलना में खेजड़ी की छाया में उगाए गए फलों के पेड़ों ने पौधों की ऊंचाई, प्रसार और पेड़ की मात्रा के संबंध में अधिक अच्छी तरह से विकास किया। इन अवलोकनों से संकेत मिलता है कि खेजड़ी का पेड़ न केवल वार्षिक फसल पर सकारात्मक प्रभाव डालता है बल्कि यह उनके आसपास लगाए गए कई फलों के पेड़ों की वानस्पतिक शक्ति में भी सुधार करता है। खेजड़ी के पेड़ प्राकृतिक रूप से उगते है जहाँ शुष्क जलवायु और गर्म वातावरण होता है और कम वर्षा 50 - 450 मिलीमीटर तक होती है। ऐसे गर्म व प्रतिकूल मौसम में भी खेजड़ी के वृक्ष आसानी से पनप जाते है। मरुस्थलीय क्षेत्र के अधिकतम व न्यूनतम तापमान को विभीषिता को सहन करने की विलक्षण क्षमता इस वृक्ष में पायी जाती है। खेजड़ी का वृक्ष सर्दियों में न्यूनतम -2 डिग्री तापमान और पाला तथा गर्मियों में 50 डिग्री से अधिक का तापमान, प्रचंड धुप, लू व गर्म हवाओं के थपेड़ो को सहन का सकता है।

shami khejri vriksh
“If every plant and flower were found in all places, the charm of locality would not exist. Everything varies, and that gives the interest.”
Kailash Narayan

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