"शमी वृक्ष" की पहचान – शमी का पेड़ कैसा होता है?
शमी वृक्ष
शमी वृक्ष मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं। इस बात की लगभग पूरी संभावना है कि आपने शमी वृक्ष को पहले एक बार या कई बार देखें होंगे। निश्चित रूप से शमी से मिलते-जुलते वृक्ष तो आपने देखे ही है। और शायद ही आपको यह पता होगा की यहीं रियल शमी वृक्ष है। अगर आप शमी के पौधे की तलाश में हैं, तो आपको सबसे पहले यह जानना होगा कि यह पौधा कैसा दिखता है ? शमी के फल, फूल, पत्तियाँ आदि कैसे होते है? और आप इसे वास्तव में कैसे पहचान सकते हैं। यहाँ शमी वृक्ष की मुख्य विशेषताएँ और लक्षणों को पहचानेंगे और शमी वृक्ष और पौधे को आप स्वयं पहचाने इसके तरीके बताएंगे।
असली शमी वृक्ष की पहचान
इससे पहले कि हम इस बारे में बात करें कि आप वास्तव में शमी के पौधे की पहचान कैसे कर सकते हैं, यहाँ शमी के पौधे का इतिहास, सांस्कृतिक महत्व, मुख्य विशेषताएँ और इसके समान दिखने वाले अन्य पेड़ आदि बताए गए हैं।
शमी वृक्ष भारत का पवित्र वृक्ष माना जाता है और कई पारंपरिक चिकित्सा के साथ-साथ धार्मिक प्रथाओं में भी इसका महत्वपूर्ण महत्व है। भारत में, इसे सौभाग्य, समृद्धि और आध्यात्मिक महत्व का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में भी शमी वृक्ष का विस्तार से वर्णन मिलता है। इसे संस्कृत में शमी वृक्ष कहा जाता है राजस्थान में पाया जाने वाला वृक्ष खेजड़ी को ही शमी कहा जाता है। इसे उत्तर प्रदेश में छोंकारा, तेलंगाना में जम्मी भी कहते है। शमी का वृक्ष आठ से दस मीटर तक ऊंचा होता है। रियल शमी पौधे की पहचान उसके कांटे, फूल, पत्तियों आदि की जाती है। इस वृक्ष की शाखाओं पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं। इसकी पत्तियां द्विपक्षवत व काफी बारिक होती हैं। शमी के फूल को मञ्जरी कहते है जो हरे रंग के होते हैं। फूल खिलने के बाद पिले रंग के होते है। शमी का जैविक नाम प्रोसोपिस सिनेरिया (Prosopis Cineraria) है। शमी पेड़ का नाम लगभग सभी ने सुना होगा लेकिन बहुत से व्यक्तियों को असली शमी के पेड़ के बारे में जानकारी नहीं है क्योंकि छोटे पौधों में शमी की पहचान करना मुश्किल है। यदि दो एक जैसे बड़े वृक्ष सामने हो तो असली शमी के पेड़ की पहचान करना बेहद आसान है। दोनों के फूल, पत्तियां और कांटे का स्थान आदि में भिन्नता होती है। अतः पहचान कर सकते है। असली शमी यह एक मध्य आकार का पेड़ होता है। जिसका तना व शाखाएं सफेद और कुछ भूरे रंग की होती हैं नयी शाखाएं हरे रंग की होती है तथा निचे की और झुकी होती है। रियल शमी वृक्ष के मुख्य तने पर पपड़ी होती हैं या छाल फटा हुआ और खुरदरा होता है। यहाँ पूर्ण रूप से वर्णन किया गया है की वास्तविक शमी वृक्ष को फल, फूल, बीज, पत्तियाँ, काँटे, नाम आदि से कैसे पहचाने।
शमी वृक्ष (prosopis cineraria), काबुली किंकर (Prosopis juliflora), वीरतरु (Dichrostachys cinerea), बबूल (Acacia Nilotica) ये पौधे लगभग एक सामान है। इन चारों के छोटे पौधे अंतर करना बहुत मुश्किल है। इन पौधों के भीतर तनों की संख्या, सीधापन, फली का आकर, बीज, फूल का रंग व आकर, पत्तियों का आकर-प्रकार, कांटों का आकार, फूल और फल लगने का समय, कांटों का स्थान, छतरियों के आकार और आकृति के संदर्भ में कुछ समानताएँ एवँ भिन्नता होती है। बड़े वृक्ष को ध्यान से देखने पर विभिन्नता का पता चलता है। अधिकतर शमी के स्थान पर वीरतरु का पौधा ही मिलता है। क्योकि दोनों में बहुत अधिक समानता होती है। शमी व वीरतरु के पौधे लगभग एक सामान दिखाई देते है। दोनों में सामान आकर की पत्तियाँ, काँटे, शाखाएँ होती है। फल में भी अंतर कर पाना मुश्किल होता है। फूल से शमी व वीरतरु के पौधे को पहचानना आसान है। वीरतरु कटिंग व बीज से उगाया जा सकता है जबकि असली शमी कटिंग से नहीं बीज से ही उगता है।
शमी व काबुली किंकर के बड़े वृक्ष में फूल व पत्ते एक सामान होते है। दोनों में लगाने वाले फूल को मिमझर कहते है। मिमझर हरे रंग की होती है तथा फूल आने पर ये पिले रंग की होती है। जबकि फल व काँटों में विभिन्नता पायी जाती है। शमी के कांटे छोटे व कबूली कीकर के कांटे आकर में बड़े होते है। शमी व बबूल में भी समानता होती है। शमी का छोटा वृक्ष व बबूल की पत्तियाँ एक सामान होती है, इनकी पत्तियाँ छोटी होती है। शमी का वृक्ष बड़ा होने पर उसकी पत्तियों का आकर कुछ बड़ा हो जाता है। इनके फूल व काँटों में भी विभिन्नता पायी जाती है। बबूल के कांटे एक इंच तक बड़े हो सकते है जिनके चुभने पर दर्द काफी देर तक रहता है।
विशाल शमी वृक्ष

वीरतरु (Dichrostachys cinerea)
वीरतरु सिकल बुश मिमोसा से संबंधित एक सुंदर, छोटा पेड़ है, जो 8 मीटर तक ऊंचा होता है। इसमें द्विपक्षी पत्तियां, 4-8 सेमी लंबी प्रत्येक में 10 से 14 पत्तियां होती हैं। यह खूबसूरत बोतल-ब्रश जैसे फूलों के सिरों के साथ खिलता है जो आधे गुलाबी और आधे पीले होते हैं। पीछे का गुलाबी भाग समय के साथ सफेद हो जाता है। कलियाँ (मंजरी) सुंदर गुलाबी और पीले शहतूत के फल की तरह दिखती हैं। फल-फली संकीर्ण रूप से आयताकार, विभिन्न प्रकार से घुमावदार और/या कुंडलित, 5-7 सेमी लंबी, 0.8-1.5 सेमी चौड़ी, हरी बाद मे काली, चमकदार होती है। सिकल बुश भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया का मूल निवासी है। वीरतरु के फूल और फल जून से अगस्त माह में लगते है।